Thursday, January 21, 2021

किसान आंदोलन पर भारतीय मीडिया चैनलों का रोल बड़ा ही नकारात्मक

 किसान नेताओं और सरकार के बीच कई चरण की बातचीत हो चुकी है लेकिन उसका अब तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है। सरकार का कहना है कि वह क़ानूनों को वापस लेने की मांग के अलावा हर मुद्दे पर बात करने के लिए तैयार है और इनमें संशोधन भी किया जा सकता है। भारत के केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी समाचार एजेंसी एएनआई से वार्ता करते हुए इस बात को दोहराया है। सरकार के वार्ताकारों का कहना है कि किसानों की हर तरह की चिंता को दूर करने के लिए हर संभव कोशिश की जाएगी। जबकि किसानों का कहना है कि ये क़ानून किसान विरोधी हैं इस लिए इन्हें वापस लिया जाना चाहिए। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने सरकार के साथ वार्ता समाप्ति पर बाहर आने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि, किसान बिना क़ानून समाप्त कराए दिल्ली से नहीं जाएगा। उधर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा। शुरुआत में उच्चतम अदालत ने इस पर कोई ख़ास रुख़ नहीं अपनाया लेकिन जैसे जैसे आंदोलन बढ़ रहा है, सुप्रीम कोर्ट पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है और हाल में उसने सरकार को फटकार भी लगाई है और इन क़ानूनों को लागू किए जाने पर अंतरिम रोक भी लगा दी है और साथ ही इस मामले में एक चार सदस्यीय समिति भी गठित कर दी है। इस पर किसानों का कहना है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से संपर्क ही नहीं किया है और कोर्ट ने जो समिति बनाई है उसमें ऐसे लोग भी हैं जो शुरू से ही इन कृषी क़ानूनों के पक्ष में बोलते रहे हैं, ऐसे में इस समिति की क्या विश्वसनीयता रह जाती है। किसान आंदोलन से जुड़े स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने इस संबंध में कहा विस्तार से बताया है। कृषी क़ानूनों पर रोक के उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले और आंदोलन में शामिल बच्चों, बूढ़ों व महिलाओं को घर वापस जाने की उसकी सलाह पर प्रतिक्रिया में किसानों ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वे इन क़ानूनों पर रोक नहीं चाहते बल्कि वे इन्हें पूरी तरह से वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसानों ने कहा कि, न्यायालय भी एक तरह से वही बात कह रहा है जो भाजपा कह रही है।



इसी बीच किसानों ने एलान कर दिया कि वे गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में बड़ी संख्या में ट्रेक्टरों क साथ रैली निकालेंगे। मोदी सरकार इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और उसने इस रैली को रुकवाने की गुहार लगाई लेकिन अदालत ने साफ़ शब्दों में कहा है कि गणतंत्र दिवस के दौरान किसे दिल्ली में आने की इजाज़त दी जाएगी, यह सुरक्षा व्यवस्था का मामला है और पुलिस को यह फ़ैसला करना चाहिए। इस तरह इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की सरकार की आशा, निराशा में बदल गई। सरकार ने अदालत से अपील की थी कि वह गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली, ट्रॉली रैली, गाड़ियों के मार्च या किसी और तरीक़े से दिल्ली आने पर रोक लगाने का आदेश दे। वहीं किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि वह आंदोलनकारी किसान भारतीय हैं इन्हें 26 जनवरी को तिरंगा लेकर देश के गणतंत्र दिवस में भाग लेने का अधिकारी है। इस बीच सरकार ने कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों का आंदोलन शुरू होते ही इसके ख़िलाफ़ तरह तरह के हथकंडे अपनाए। कभी इसमें शामिल किसानों को आतंकी कहा गया, कभी इसे पाकिस्तान व कनाडा की फ़ंडिंग से चलने वाला कार्यक्रम बताया गया, गुजरात के उप मुख्यमंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि किसान आंदोलन को देशविरोधियों, आतंकियों, ख़ालिस्तानियों और माओवादियों का समर्थन हासिल है और हाल ही में इस आंदोलन से जुड़े दसियों लोगों को भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने नोटिस भेजा है जिस पर भाजपा की सहयोगी रहे अकाली दल ने कहा है कि केंद्र सरकार, किसानों को डराने की कोशिश कर रही है। अलबत्ता किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं ने शुरू से ही बड़ी सतर्कता से काम किया है और सरकार को किसानों के बीच फूट डालने की अनुमति नहीं दी है। भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख गुरनाम सिंह चडूनी इस बारे में प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं।


इस पूरे मामले में कुछ मीडिया चैनलों का रोल भी बड़ा ही नकारात्मक रहा है। इतने संवेदनशील मामले में सही रिपोर्टिंग करने और अन्नदाताओं की बात लोगों तक पहुंचाने के बजाए, कुछ मीडिया चैनल, सत्ता का साथ देते दिखाई दे रहे हैं। इन चैनलों ने शुरू में तो किसानों के आंदोलन को कवरेज ही नहीं दी और जब मामला अधिक गर्म हो गया तो इस आंदोलन की ओर से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश शुरू कर दी। इन चैनलों ने ग़ैर अहम और दूसरे व तीसरे दर्जे की ख़बरों को अधिक कवरेज दी। मिसाल के तौर पर बंगाल चुनाव और तृणमूल कांग्रेस के कुछ सदस्यों के पार्टी छोड़ने के मामले को जितनी कवरेज दी जा रही है, उतनी किसान आंदोलन को नहीं दी जा रही है। मीडिया की इस भूमिका के बारे में वरिष्ठ पत्रकार बिराज स्वैन कहती हैं। वहीं वरिष्ठ पत्रकार गौरव लाहिरी कहते हैं कि इस मामले को मीडिया में जितनी कवरेज मिलनी चाहिए, उतनी नहीं मिल रही है। कुल मिलाकर दिल्ली की सीमाओं पर कड़ाके की ठंड में लगभग दो लाख किसान, कृषि क़ानूनों की वापसी की मांग को लेकर दो महीने से आंदोलन पर बैठे हुए हैं और इस दौरान दर्जनों किसानों की मौत हो चुकी है। अब तक किसानों ने बहुत अधिक संयम का प्रदर्शन किया है लेकिन यह स्थिति हमेशा नहीं रहेगी। सरकार को चाहिए कि हालात अनियंत्रित होने से पहले ही बुद्धिमत्ता से काम लेते हुए किसानों की मांगों को स्वीकार कर ले क्योंकि वह शुरू से ही यह कह रही है कि ये क़ानून किसानों के हित में है लेकिन जब किसान ही इन क़ानूनों को नहीं चाहते तो उसे इन क़ानूनों पर इतनी ज़िद नहीं करनी चाहिए। 

Source : parstoday

Tuesday, January 19, 2021

आजम खां पर योगी की चोट- जौहर ट्रस्ट की 1400 बीघा जमीन सरकार के नाम दर्ज हो गई है

 सीतापुर जेल  में बंद सपा के  नेता और रामपुर से सांसद आजम खान साहब को बड़ा झटका लगा है।. जौहर ट्रस्ट की 1400 बीघा जमीन सरकार के नाम दर्ज हो गई है। 16 जनवरी को एडीएम प्रशासन जेपी गुप्ता की कोर्ट के आदेश के बाद यह कार्रवाई की गई है।

 गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी की सरकार में जौहर ट्रस्ट ने यह जमीन कुछ शर्तों के साथ खरीदी थी, जिस पर आज जौहर यूनिवर्सिटी बनी है. आरोप है कि जमीन खरीदने के बाद शर्तों का पालन नहीं किया गया. शर्तों के उल्लंघन की शिकायत बीजेपी नेता आकाश सक्सेना ने की थी।

बीजेपी नेता आकाश सक्सेना की शिकायत के बाद तत्कालीन  SDM सदर ने जांच करवाई तो शिकायत सही पाई गई थी. शिकायत सही पाए जाने के वाद एडीएम प्रशासन की कोर्ट में मुकदमा चला और 16 जनवरी को कोर्ट ने ज़मीन को सरकार को वापस करने का आदेश दिया था, जिस पर कार्रवाई करते हुए एसडीएम सदर प्रवीण कुमार ने 1400 बीघा जमीन तहसील के अभिलेखों में जौहर ट्रस्ट से काटकर सरकार के नाम दर्ज करवा दी है।



Thursday, January 14, 2021

एक महिला ने अपने पति को कुत्ता बनाया।

 दुनियाभर के कई देशों में लॉकडाउन अभी भी लागू है। इसकी वजह से लोगों को घर के बाहर निकलने में काफी दिक्कतें हो रही हैं। ऐसे में लोग तरह-तरह के बहाने बनाकर बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में कनाडा के क्यूबेक प्रांत में अजीबोगरीब मामला सामने आया है। यहां रहने वाली एक महिला ने अपने पति के गले में पट्टा बांधकर उसे बाहर टहलाने के लिए निकल गई। हालांकि, पुलिसवालों ने दोनों पर कार्रवाई करते हुए जुर्माना भी लगाया है।

'डेली मेल' की रिपोर्ट के अनुसार, कनाडा के क्यूबेक में चार हफ्तों को कर्फ्यू लगाया गया है। यह कर्फ्यू रात के समय ही लागू किया जा रहा है, जिसकी वजह से रात आठ बजे से लेकर सुबह पांच बजे तक लोगों को बाहर निकलने की इजाजत नहीं है। हालांकि, प्रशासन ने इस दौरान, आवश्यक चीजों को ले जाने वाले लोगों को और ऐसे लोग जो अपने पालतू डॉग्स को टहलाना चाहते हैं, उन्हें इजाजत दी है।

कर्फ्यू में घर से बाहर निकलने के लिए एक महिला ने अपने पति के गले में कुत्ते वाला पट्टा बांधकर उसे घुमाना शुरू कर दिया। रिपोर्ट में स्थानीय अखबार के हवाले से बताया गया है कि महिला शेरब्रूक की किंग स्ट्रीट ईस्ट पर अपने पार्टनर को घुमा रही थी कि तभी वहां पुलिस आ गई। पुलिस वालों ने जब महिला इसके बारे में पूछा तो उसने बताया कि वह अपने 'कुत्ते के साथ टहल रही है।' पुलिस डिपार्टमेंड की इसाबेल गेंड्रोन ने बताया कि यह कपल पुलिस के साथ बिल्कुल भी सहयोग नहीं कर रहा था।

पुलिस ने दोनों पर लगाया भारी जुर्माना

कर्फ्यू का उल्लंघन करने के आरोप में महिला और उसके पार्टनर पर भारी जुर्माना लगाया गया। प्रशासन ने नोटिस के जरिए से उल्लंघन करने की जानकारी दी। दोनों पर 2400 डॉलर (तकरीबन पौने दो लाख) का जुर्माना लगाया गया। इस तरह से एक-एक पर 1200-1200 डॉलर का जुर्माना लगा है। वहीं, कनाडा में पिछले कुछ समय से काफी तेजी से कोरोना वायरस के मामले बढ़े हैं। देश में अब तक 17 हजार लोगों की महामारी के चलते जान जा चुकी है। ऐसे में कर्फ्यू तोड़ने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जा रहा है। पुलिस ने पहले हफ्ते में 750 लोगों पर जुर्माना लगाया है। ये सभी नाइट कर्फ्यू का उल्लंघन कर रहे थे। 



Wednesday, January 13, 2021

आंदोलन में कोई देश विरोधी बातें कर रहा है तो सरकार उसे गिरफ़्तार करे

 किसानों ने कहा है कि कानूनों के अमल पर रोक कोई हल नहीं है। किसान संगठन इस उपाय की मांग नहीं कर रहे थे। ये रोक कभी भी हट सकती है और फिर बात वहीं रहेंगी जहां आज है। हमने 3 क़ानूनों की प्रतियां जलाकर सरकार को संदेश दिया है कि इसी तरह ये बिल एक दिन हमारे गुस्से की भेंट चड़ेंगे और सरकार को क़ानून वापस लेने पड़ेंगे। 18 तारीख को महिलाएं पूरे देश में बाज़ारों में, SDM दफ़्तरों, जिला मुख्यालयों में विरोध प्रदर्शन करेंगी: दर्शनपाल सिंह, किसान नेता



 आंदोलन में कोई देश विरोधी बातें कर रहा है तो सरकार उसे गिरफ़्तार करे। कृषि क़ानून कैसे ख़त्म हो सरकार इस पर काम करे। सरकार ने 10 साल पुराने ट्रैक्टर पर बैन लगाया है तो हम 10 साल पुराने ट्रैक्टर को दिल्ली की सड़कों पर चला कर दिखाएंगे: राकेश टिकैत, भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता

किसान यूनियन के चारों वकीलों के नहीं आने से चीफ जस्टिस नाराज हो गए हैं।

 संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ कुछ किसान संगठनों का आंदोलन एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर जारी है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई भी की गई। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसके तीनों कानूनों के अमल पर फिलहाल रोक लगाते हुए एक कमेटी का गठन कर दिया है। हालांकि आपको यह भी बता दें कि किसान यूनियन के चारों वकीलों के नहीं आने से चीफ जस्टिस नाराज हो गए हैं।



इन चारों वकील में दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण, कॉलिन गोंसाल्विस और एचएस फूलका शामिल हैं। इन चारों वकीलों ने कृषि कानूनों पर प्रस्तावित समिति के समक्ष पेश होने की किसान संगठनों की इच्छा पर प्रतिक्रिया के साथ 24 घंटे से कम समय में वापस आने का वादा किया था।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, भूषण, गोंसाल्वेस और फूलका ने सोमवार को सीजेआई एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया था कि दुष्यंत दवे इसका नेतृत्व कर रहे हैं और कोर्ट को उन कृषि यूनियनों के विचारों से अवगत कराएंगे, जिन्होंने उन्हें वकील के रूप में नियुक्त किया था। दवे ने शुरुआत में अदालत को सूचित किया था कि किसान गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली नहीं करेंगे। उन्होंने किसानों की प्रतिक्रिया के साथ आने के लिए मंगलवार तक का समय मांगा था।

इन चारों वकीलों में कोई भी मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान मौजूद नहीं थे। सीजेआई ने सुवाई के दौरान चारों अनुभवी वकीलों की  अनुपस्थिति पर नाराजगी प्रकट की। सीजेआई ने कहा, "बार के सदस्य, जो पहले अदालत के अधिकारी हैं और फिर अपने मुवक्किलों के वकील हैं, उनसे कुछ वफादारी (अदालत की ओर) दिखाने की उम्मीद की जाती है। आप अदालत के सामने तब हाजिर होंगे जब यह आपके अनुरूप होगा और यदि नहीं होता है तो आप नहीं आएंगे। आप ऐसा नहीं कर सकते हैं।"

CJI ने याद दिलाया किसोमवार को दवे ने निष्पक्ष रूप से कहा कि उनके क्लाइंट (किसान संगठन के लोग) ट्रैक्टर मार्च आयोजित नहीं करने वाले हैं। यह उन्होंने तब कहा था जब सीजेआई ने कहा था कि किसान समिति के सामने क्यों नहीं आ सकते हैं जब वे सरकार के प्रतिनिधियों से मिलने के लिए सहमत हो गए हैं। सीजेआई ने कहा था, ''यदि आप (किसान) समस्या को हल करना चाहते हैं, तो आप इसे बातचीत और बातचीत करके कर सकते हैं। अन्यथा, आप वर्षों तक आंदोलन कर सकते हैं।”

दिल्ली के एक नागरिक की तरफ से अपील कर रहे वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा, "किसी को भी राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया का उपयोग नहीं करना चाहिए। कृषि कानूनों को रद्द करने के बार में वे सोचते हैं, लेकिन समिति की कार्यवाही में भाग नहीं लेंगे। उच्चतम न्यायालय ने जो कहा था कि वह विश्वास को बनाने और समिति के माध्यम से प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए कानूनों का क्रियान्वयन जारी रखेगा "

CJI की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, "हम समस्या (कृषि कानूनों को लागू करने से उत्पन्न) का हल करना चाहते हैं। हम जमीनी स्थिति जानना चाहते हैं। इसीलिए समिति का गठन किया जा रहा है। यह सभी हितधारकों से बात करेगा। हमें एक रिपोर्ट दें। रिपोर्ट के आधार पर, हम आगे बढ़ेंगे (याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे) और रिपोर्ट की वैधता का निर्धारण करेंगे।” 

Tuesday, January 12, 2021

गूगल पर व्हाट्सएप चैट हुई लीक, आट हो जाए होशियार!



अपनी नई सेवा शर्तों को लेकर फेसबुक के स्वामित्व वाला व्हाट्सएप (WhatsApp) विवादों से घिरा ही है कि इसी बीच एक विवाद WhatsApp के साथ जुड़ गया है। WhatsApp ग्रुप के मैसेज गूगल पर लीक हो गए हैं। ऐसे में कोई भी गूगल पर WhatsApp group सर्च करके आपके चैट को पढ़ सकता था और आपके निजी ग्रुप को ज्वाइन भी कर सकता था। WhatsApp की इस गलती की वजह से लोगों के व्हाट्सएप ग्रुप के सभी नंबर्स भी सार्वजनिक हो गए थे।

2019 में भी गूगल पर लीक हुआ था डाटा 
यह पहला मौका नहीं है जब WhatsApp चैट गूगल पर लीक हुआ है। इससे पहले 2019 में भी इसी तरह कई ग्रुप और चैट गूगल सर्च में मिल रहे थे, हालांकि व्हाट्सएप ने अब इस बग को फिक्स कर दिया है। व्हाट्सएप के इस बग के बारे में साइबर सिक्योरिटी रिसर्चर राजशेखर राजहरिया ने जानकारी दी थी। रिपोर्ट के मुताबिक करीब 1,500 व्हाट्सएप ग्रुप के इनवाइट लिंक गूगल रिजल्ट्स में आ रहे थे। इनमें से कई ग्रुप ऐसे थे जो पॉर्न वाले थे और कई किसी खास समुदाय के थे। कुछ ग्रुप्स बांग्ला और मराठी के थे। 
इस लीक पर WhatsApp ने क्या कहा? 
डाटा लीक की रिपोर्ट सामने आने पर WhatsApp ने अपने एक बयान में कहा कि मार्च 2020 के बाद से व्हाट्सएप ने सभी लिंक पेजों के लिए noindex टैग लागू कर दिया है जिसके बाद से ये पेज गूगल की इंडेक्सिंग से बाहर हैं। कंपनी ने गूगल को इन चैट को इंडेक्स नहीं करने को कहा है।  
व्हाट्सएप हर बार की लीक पर भले ही सफाई देता रहे, लेकिन कहीं-ना-कहीं व्हाट्सएप की प्राइवेसी अब धीरे-धीरे कमजोर होने लगी है जिसके कारण लोग टेलीग्राम और सिग्नल जैसे दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं। बता दें कि व्हाट्सएप की नई सेवा शर्त के बाद एपल एप स्टोर पर टॉप फ्री एप्स की लिस्ट में सिग्नल आ गया है।
(अमर उजाला)

Monday, January 11, 2021

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता का तीखा वार, भाजपा चुनाव हारने पर ट्रंप के समर्थकों जैसा बर्ताव करेंगे बीजेपी कार्यकर्ता

 पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को बीजेपी पर तीखा वार किया। उन्होंने बीजेपी कार्यकर्ताओं और हाल ही में अमेरिकी संसद भवन कैपिटल हिल में हिंसा करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों की तुलना करते हुए कहा कि जिस दिन भाजपा चुनाव हारेगी तो उसके कार्यकर्ता और समर्थक भी इसी तरह का बर्ताव करेंगे। इसके अलावा, बनर्जी ने कहा कि तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर चल रहे किसानों के आंदोलन के संबंध में बीजेपी के अड़ियल रवैये की वजह से देश खाद्य संकट एवं सूखे की ओर बढ़ रहा है। ममता बनर्जी ने कहा कि दूसरे राजनीतिक दलों के बेकार नेताओं को शामिल करके भाजपा कबाड़ पार्टी बन रही है। रैली को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने सीएए, एनआरसी और एनपीआर के प्रति विरोध जताया और नदिया जिले की मतुआ आबादी का हवाला देते हुए कहा कि सभी शरणार्थियों को भूमि का अधिकार दिया जाएगा और कोई उन्हें देश से बाहर नहीं कर सकता। जिले में इस समुदाय की आबादी करीब 40 फीसदी है। 



Sunday, January 10, 2021

भाजपा विधायक मदन दिलावर ने बर्ड फ्लू फैलाने के लिए किसानों को जिम्मेदार ठहराया और आतंकवादी बताया। BJP MLA Madan Dilawar blamed the farmers for spreading bird flu and called them terrorists.

 देशभर में आंदोलन कर रहे किसानों पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए राजस्थान के बीजेपी विधायक मदन दिलावर ने एक अटपटा सा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि किसान प्रदर्शन स्थल पर चिकन खाकर देश में बर्ड फ्लू फैलाने की साजिश रच रहे हैं। उन्होंने किसानों को चोर और आतंकवादी तक बता दिया।

विधायक दिलावर इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, 'तथाकथित किसान देश को लेकर चिंतित नहीं हैं। वे अच्छे व्यंजनों का लुत्फ उठा रहे हैं और पिकनिक मना रहे हैं।' 

उन्होंने कहा, 'कुछ तथाकथित किसान आंदोलन कर रहे हैं। ये तथाकथित किसान किसी आंदोलन में हिस्सा नहीं ले रहे बल्कि चिकन बिरयानी और काजू बादाम खाकर छुट्टियां मना रहे हैं। यह बर्ड फ्लू फैलाने की साजिश है। इनमें आतंकवादी, चोर, डकैत भी हो सकते हैं और ये किसानों के भी दुश्मन हो सकते हैं। ये देश को बर्बाद करना चाहते हैं।'

दिलावर ने कहा, 'अगर सरकार इन आंदोलन स्थलों को खाली नहीं करवाती है तो देश में बर्ड फ्लू एक बड़ी समस्या बन जाएगी।'

बता दें कि 26 नवंबर से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर देशभर के किसान आंदोलन कर रहे हैं। ये किसान केंद्र के लाए तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। सरकार के साथ कई दौर की वार्ता के बाद भी अभी तक यह आंदोलन थमा नहीं है।



Expressing his anger at the farmers agitating across the country, BJP MLA from Rajasthan Madan Dilawar has made a strange statement.  He said that farmers are plotting to spread bird flu in the country by eating chicken at the protest site.  He even told the farmers to be thieves and terrorists.

 MLA Dilavar did not stop at this.  He further said, 'The so-called farmers are not worried about the country.  They are enjoying good cuisine and having a picnic. '

 He said, 'Some so-called farmers are agitating.  These so-called farmers are not taking part in any movement but are holidaying by eating chicken biryani and cashew almonds.  It is a conspiracy to spread bird flu.  They can also be terrorists, thieves, dacoits and they can also be enemies of farmers.  They want to ruin the country.

 Dilavar said, "If the government does not evacuate these movement sites, then bird flu will become a major problem in the country."

 Explain that since 26 November, farmers across the country have been agitating on different boundaries of Delhi.  These farmers are demanding withdrawal of three new agricultural laws brought to the center.  Even after several rounds of talks with the government, this movement is not yet stopped.

2022 UP चुनाव- ओम प्रकाश राजभर और चंद्रशेखर की मुलाकात, गठबंधन को लेकर हुई चर्चा

 शनिवार को राजधानी के एक होटल में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष विधायक ओम प्रकाश राजभर तथा आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के बीच विधानसभा चुनाव 2022 को ध्यान में रखते हुए गठबंधन पर चर्चा हुई। माना जा रहा है कि चंद्रशेखर आजाद भी राजभर द्वारा बनाए गए भागीदारी संकल्प मोर्चा का हिस्सा हो सकते हैं। इस संबंध में ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि मुलाकात के दौरान राज्य के मौजूदा राजनीतिक स्थिति और आगामी चुनावों को लेकर चर्चाएं हुईं। भविष्य में होने वाली बैठकों के दौरान विधानसभा चुनाव के लिए एक साथ आने पर और गंभीरता से चर्चा की जाएगी। 



ओवैसी भी कर चुके हैं ओमप्रकाश राजभर से मुलाकात
यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर विपक्षी पार्टियों ने अभी से कमर कसनी शुरू कर दी है। छोटे-छोटे दल मिलकर बड़े दलों का गणित बिगाड़ने की तैयारी भी शुरू हो गई है। कुछ दिन पहले ओम प्रकाश राजभर और एआईएमएआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी की मुलाकात हुई थी। इससे साफ हो गया था कि ओवैसी की नजर अब यूपी के विधानसभा चुनाव पर है। ओवैसी और राजभर चुनाव को लेकर आपस में चर्चा भी की थी। यही नहीं गठबंधन के लिए ओवैसी प्रसपा और बसपा से भी चर्चा कर चुके हैं। आपको बता दें कि बिहार विधानसभा में ओवैसी पांच विधायकों की जीत के बाद अब यूपी विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को उतारने की तैयारी कर रहे हैं।

Tuesday, January 5, 2021

Alert about bird flu in many states कई राज्यों में बर्ड फ्लू को लेकर अलर्ट



 कोरोना (Corona) अभी ठीक से खत्म भी नहीं हुआ कि इंसान के सामने बर्ड फ्लू (Bird Flu) जैसी बड़ी समस्या खड़ी हो गई है. इससे भी ज्यादा परेशानी की बात यह है कि अभी तक चार राज्यों से आये पक्षियों के सैंपल में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई है. भोपाल (Bhopal) स्थित राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (ICAR-National Institute of High Security Animal Diseases) के विश्वस्त सूत्र ने बताया कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल और हिमाचल प्रदेश से मृत पक्षियों के जो सैंपल आये थे उन सभी में एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza) पॉजिटिव पाया गया है. उत्तराखंड से आये पक्षियों के सैंपल की जांच दोबारा की जा रही है, क्योंकि उनके सैंपल सड़ गये थे. उन्होंने यह भी बताया कि दिल्ली में इसकी रोकथाम के लिए एक कंट्रोल रूम बनाया गया है.

राजस्थान में किंगफिशर, मैगपी और कौव्वों की मौतें हुई हैं. वहीं मध्य प्रदेश में सिर्फ कौव्वे ही मरे पाये गये हैं. हिमाचल प्रदेश से प्रवासी पक्षियों के मरने की खबरें आ रही हैं, जबकि केरल से बत्तखों के मरने की खबरें आ रही हैं. यूपी से सटे दूसरे राज्यों में पक्षियों में फैले बर्ड फ्लू के चलते यहां भी सतर्कता बढ़ायी जा रही है. हालांकि अभी तक यूपी से किसी प्रकार के पक्षियों के मरने का कोई मामला सामने नहीं आया है लेकिन, हालात चिंताजनक जरूर बन गये हैं.

Corona is not yet finished properly that a big problem like bird flu has arisen in front of humans.  Even more disturbing is that so far the bird flu has been confirmed in a sample of birds from four states.  A reliable source from the National Institute of High Security Animal Diseases, based in Bhopal  said that samples of dead birds from Madhya Pradesh, Rajasthan, Kerala and Himachal Pradesh were among avian influenza.  has been found positive.  The samples of birds from Uttarakhand are being investigated again, because their samples were rotting.  He also informed that a control room has been made in Delhi for its prevention.

 In Rajasthan, there have been deaths of kingfishers, magpies and crows.  At the same time, only crows have been found dead in Madhya Pradesh.  There are reports of death of migratory birds from Himachal Pradesh, while there are reports of death of ducks from Kerala.  Due to bird flu spread in other states adjacent to UP, vigilance is also being increased here.  Although no cases of birds of any kind have been reported from UP yet, the situation has definitely become worrisome.


Friday, January 1, 2021

सरकारी मदरसों को बंद कर स्कूलों में तब्दील किया जाएगा, विधानसभा में विधेयक पारित| Assam Government madrasas will be closed and converted into schools, the bill passed in the assembly

असम विधानसभा ने राज्य के सभी सरकारी मदरसों को समाप्त कर उन्हें सामान्य स्कूल में तब्दील करने के प्रावधान वाले विधेयक को बुधवार को मंजूरी दे दी. इससे पहले विपक्ष ने विधेयक को स्थायी समिति को भेजने की अपनी मांग को अस्वीकार किए जाने के बाद सदन से वॉकआउट किया.



असम के शिक्षा मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कांग्रेस और एआईयूडीएफ सदस्यों के ‘असम निरसन विधेयक-2020’ को उचित चर्चा के लिए स्थायी समिति को भेजने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया.

इसके बाद विधानसभाध्यक्ष हितेंद्र नाथ गोस्वामी ने विधेयक पर मत विभाजन कराने को कहा.

सदन में शोरगुल के बाद विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया. भाजपा के सभी सहयोगी दलों- असम गण परिषद एवं बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ)- ने विधेयक का समर्थन किया.

इस विधेयक में दो मौजूदा कानूनों- असम मदरसा शिक्षा (प्रादेशिक) अधिनियम-1995 और असम मदरसा शिक्षा (प्रादेशिक कर्मचारियों की सेवाओं एवं मदरसा शिक्षा संस्थान पुनर्गठन) अधिनियम- 2018- को रद्द करने का प्रस्ताव है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक शिक्षा मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने मुस्लिम समुदाय को सशक्त बनाने के कदम के रूप में विधेयक पेश किया.

विधानसभा में विधेयक पेश करते हुए शर्मा ने कहा, ‘हम वोट नहीं चाहते हैं. हम तुष्टीकरण नहीं करते. इस समुदाय के साथ हमारा कोई निहित स्वार्थ नहीं है, लेकिन राजनीति से दूर, हम उस समुदाय को आगे ले जाना चाहते हैं. जब डॉक्टर और इंजीनियर इन स्कूलों से बाहर आएंगे, तो यह आपके लिए प्रशंसा का कारण बनेगा.’

विपक्षी सदस्यों की आपत्तियों का जवाब देते हुए शर्मा ने कहा, ‘मैं महसूस करता हूं कि यह अल्पसंख्यक समुदाय के लिए उपहार साबित होगा. मदरसों में जो बच्चे पढ़ रहे हैं वे 10 साल बाद इस फैसले का स्वागत करेंगे.’

शर्मा ने बीआर अंबेडकर के हवाले से कहा कि उन्होंने कहा था कि धार्मिक शिक्षा का पाठ्यक्रम में कोई स्थान नहीं होना चाहिए.

उन्होंने तर्क दिया कि कुरान को सरकारी खर्च पर नहीं पढ़ाया जाना चाहिए, क्योंकि बाइबल या भगवद् गीता या अन्य धर्मों के ग्रंथों को इस तरह नहीं पढ़ाया जाता है.

उन्होंने कहा कि विधेयक को किसी समुदाय के साथ शत्रुता से नहीं लाया गया, बल्कि समाज के एक पिछड़े और शोषित वर्ग के उत्थान और विकास के सपने के साथ लाया गया है.

विधेयक के मुताबिक, सभी मदरसों को अगले साल एक अप्रैल से उच्च प्राथमिक, उच्च एवं उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में तब्दील किया जाएगा लेकिन इनमें कार्यरत शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के दर्जे, वेतन, भत्तों एवं सेवा शर्तों में बदलाव नहीं होगा.

विपक्ष ने मदरसों को बंद करने के सरकार के कदम की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि राज्य में यह ध्रुवीकरण का हथकंडा है जहां अगले साल मार्च-अप्रैल में चुनाव होने हैं.

शर्मा ने कहा, ‘यह कहना गलत है कि सरकार यह मुस्लिम समाज के खिलाफ कर रही है. इस्लामी कट्टरवाद का विरोध करना इस्लाम धर्म का विरोध करना नहीं है. हमारी सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के उत्थान के लिए बहुत कुछ किया है.’

मदरसों को अरबी, उर्दू और अंग्रेजी सीखने के लिए उत्कृष्ट केंद्र बनाने के कांग्रेस विधायक शर्मन अली अहमद के सुझाव पर शर्मा ने कहा कि वर्तमान में 50,600 छात्र सामान्य स्कूलों में अरबी सीख रहे हैं और यह परिवर्तित मदरसों में भी पढ़ाया जाता रहेगा.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, असम में इस समय दो तरह के सरकारी मदरसा संचालित किए जा रहे हैं. 189 उच्च मदरसा और मदरसा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय माध्यमिक शिक्षा मंडल असम (एसईबीए) और असम उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परिषद (एएचएसईसी) द्वारा संचालित होते हैं.

इसके अलावा 542 प्री सीनियर, सीनियर और मदरसा तथा अरबी कॉलेज राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के द्वारा संचालित किया जाता है.

सरकार अब शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड को भंग कर देगी और सभी रिकॉर्ड, बैंक खातों और कर्मचारियों को एसईबीए में स्थानांतरित कर दिया जाएगा.

एसईबीए द्वारा संचालित उच्च और उच्चतर माध्यमिक मदरसों की तरह नियमित स्कूलों के रूप में उनके नाम और संचालन को बदला जाएगा.

मदरसों के कर्मचारियों, विशेष रूप से धार्मिक विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षकों को बरकरार रखा जाएगा या अन्य विषयों को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा.

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