Wednesday, October 4, 2017

मुस्लमान होने की सज़ा : '30 साल सेना में नौकरी की और बदले में मुझे 'विदेशी' होने का नोटिस थमा दिया गया


मोहम्मद अजमल हक

2016 में सेना के जूनियर कमीशन अफ़सर (जेसीओ) के पद से मोहम्मद अजमल हक रिटायर हुए थे. अजमल पर 'संदिग्ध नागरिक' का आरोप लगाते हुए कामरूप ज़िले के बोको स्थित विदेशी ट्रिब्यूनल की अदालत संख्या 2 ने यह नोटिस भेजा है.
विदेशी ट्रिब्यूनल ने इस संदर्भ में एक मामला (बीएफटी 1042/16) दर्ज किया है, जिसमें पहला पक्ष राज्य सरकार है.
इस नोटिस में मोहम्मद अजमल हक से कहा गया- ''कामरूप ज़िला पुलिस अधीक्षक ने आपके ख़िलाफ़ 25 मार्च 1971 के बाद गैर-क़ानूनी रूप से बिना किसी कागजात के असम में प्रवेश करने का आरोप दाख़िल किया है.
लिहाजा इसके द्वारा आपको सूचित किया जाता है कि विदेशी क़ानून 1946 की उपयुक्त धाराओं के अनुसार आपको क्यों विदेशी नागरिक के रूप में शिनाख्त नहीं किया जाए?
अगर इसके उपयुक्त कारण हैं तो अदालत में हाज़िर होकर लिखित जबाव दाख़िल कर आपकी बात के समर्थन में सबूत पेश करें. अन्यथा यह मामला एक तरफ़ा चलाया जाएगा.''
मोहम्मद अजमल हक 1986 में बतौर एक सिपाही सेना में भर्ती हुए थे और 2016 में वे जेसीओ के पद से रिटायर हुए.
भारतीय सेना में अपनी 30 साल की नौकरी के दौरान हक ने जम्मू एंड कश्मीर के कारगील से लेकर पंजाब से सटे पाकिस्तान की सीमा पर ड्यूटी की हैं.
मोहम्मद अजमल ने बीबीसी से कहा, ''30 साल सेना में नौकरी की और बदले में मुझे 'विदेशी' होने का नोटिस थमा दिया गया. मेरा कसूर बस इतना है कि मैं मुसलमान हूं.
सेना में रहते हुए मैंने दुश्मनों से हमेशा देश की रक्षा की और देश के लिए मरने को भी तैयार रहता था. जब से यह नोटिस मिला है,इतना दुख होता है कि मैं अकेले में बैठकर रोता हूं. मैं बहुत रोया. राष्ट्र के प्रति मेरा जो कर्तव्य है उसके लिए हमेशा समर्पित रहा हूं.''
हम चार भाई हैं. मैं सेना में था और मुझे पर ही 'संदिग्ध नागरिक' होने के आरोप लगा दिए गए. जबकि मेरी नागरिकता से जुड़े तमाम कागजात मेरे पास हैं.
साल 1966 की मतदाता सूची में मेरे पिता महबूब अली का नाम शामिल है. इससे पहले राष्ट्रीय नागरिक पंजी में भी हमारे परिवार का नाम है. अदालत में यह सबकुछ साफ़ हो जाएगा.
लेकिन देश की सेवा करने के बाद मुझे जिस कदर 'संदिग्ध नागरिक' बना दिया गया, इस बात की ज़िम्मेदारी कौन लेगा. इससे पहले 2012 में भी मेरी पत्नी को ऐसा ही एक नोटिस ट्रिब्यूनल ने भेजा था.
बाद में सारे कागजात कोर्ट को दिखाने पर मामले को वापस ले लिया. क्यों हमारी नागरिकता को हर बार निशाना बनाया जाता हैं?''
सेना की 633 ईएमई बटालियन से रिटायर हुए अजमल हक के संदर्भ में हरियाणा के हिसार में उनके सहकर्मी रहें एक लेफ्टिनेंट कर्नल ने अपना नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहा कि हक जब पेंशन पर गए हैं तो उनके पास 30 साल का प्रमाणपत्र है. मेरे साथ उन्होंने लखनऊ यूनिट में काम किया और बाद में जब मैं हिसार आया तो मेरे सामने ही वे यहां से रिटायर हुए.''
इस मामले के संदर्भ में असम पुलिस महानिदेशक मुकेश सहाय ने कहा, ''नोटिस भेजने के काम की एक प्रक्रिया होती है. नोटिस देने के समय उसकी जो प्रक्रिया है कि एक जांच अधिकारी जाता है और पूछताछ करता है.
अगर किसी के ऊपर कोई शक है कि वह अवैध प्रवासी है तो उससे नागरिकता से संबंधित दस्तावेज़ मांगे जाते हैं.
उस समय अगर वह आदमी कोई दस्तावेज़ नहीं दे पाता है तो मामला पुलिस अधीक्षक के माध्यम से विदेशी ट्रिब्यूनल को भेज दिया जाता है.
इसके बाद कोर्ट से नोटिस जारी कर दिया जाता हैं. उसमें कोई अल्टीमेट नहीं है. अंतिम फ़ैसला तो ट्रिब्यूनल करती है. अगर उसमें एक-आध मामले ऐसे हो गए हो तो वह आदमी अपने भारतीय होने का सबूत दे देगा तो मामला तुरंत ख़त्म कर दिया जाएगा.''
पुलिस महानिदेशक ने आगे कहा कि अगर इस मामले में कोई जानबूझ कर बदमाशी कर रहा है और ऐसा मामला हमारे नोटिस में लाया जाता है तो हम तुरंत कार्रवाई करेंगे. इस मामले में 13 अक्टूबर को सुनवाई होगी.
गुवाहाटी हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकिल हाफ़िज रशीद अहमद चौधरी ने कहा, ''इस पूरे मामले में पुलिस ज़िम्मेदार है. किसी भी व्यक्ति की नागरिकता से संबंधित जांच-पड़ताल में ऐसी लापरवाही कैसे हो सकती हैं.
विदेशी ट्रिब्यूनल से नोटिस उन्हीं को भेजा जा रहा है जिसपर संदेह किया जाता है. लेकिन यहां नोटिस सिर्फ बंगाली बोलने वाले मुसलमान और हिंदुओं को भेजा जा रहा है.
दरअसल विदेशी ट्रिब्यूनल में मामला बाद में आता है, पहले पुलिस के लोग ज़मीनी स्तर पर किसी व्यक्ति की नागरिकता से जुड़े दस्तावेज़ों की जांच करते हैं. ये लोग ठीक से पूछताछ नहीं करते हैं.
तभी तो चुनाव अधिकारी तक को नोटिस भेज देते हैं. ऐसा एक मामला अदालत में हैं. यह पूरी तरह ग़लत काम हो रहा है. किसी एक धर्म और भाषा के लोगों को परेशान किया जा रहा हैं.''
आईएमडीटी क़ानून को उस समय कोर्ट में चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता सर्बानंद सोनोवाल ही थे जो आज असम के मुख्यमंत्री हैं.
इसी आदेश के अंतर्गत असम में कई विदेशी ट्रिब्यूनल स्थापित किए गए हैं, जो किसी भी सदिंग्ध व्यक्ति की भारतीय नागरिकता की स्थिति की जांच कर उनकी शिनाख्त करते हैं.
असम में पहले ऐसे विदेशी ट्रिब्यूनलों की संख्या 36 थी लेकिन कथित घुसपैठियों से संबंधित मामलों की संख्या में बढ़ोत्तरी को देखते हुए 2015 में ट्रिब्यूनलों की संख्या 100 तक बढ़ा दी गई.

No comments:

Post a Comment

"शाही खाना" बासमती चावल, बिरयानी चावल Naugawan City Center (NCC) (नौगावा सिटी सेंटर) पर मुनासिब दामों पर मिल रहे हैं।

White Shahi Khana Basmati Rice, Plastic Bag,  ₹ 75 / kg  शाही खाना बासमती चावल, NOORE JANNAT, GLAXY,NWAZISH बिरयानी चावल  Naugawan City Cent...