लेखक - गुलाम अब्बास किट्टी भाजपा नेता, नौगावां सादात
अमरोहा, नौगावां। दारूल उलूम ने फतवा जारी किया है कि मुस्लिम महिलाऐं उन घरो में शादी से बचें जो बैंक कर्मी हो या उनके घर में बैंक से सम्बन्धित कमाई आती हो। यह मसला बड़ा ही हास्यस्पद है।
की हिन्दुस्तान में सेकड़ो सालो से चली आ रही बैंकिंग प्रणाली अगर इस्लाम के खिलाफ है तो इन मौलवियों ने अभितक इसका विरोध उच्च स्तर पर क्यों नही किया। बैंको में नौकरी कर रहे लाखो मुसलमान क्या अबतक नाजाईज़ कमाई पर ही जी रहे थे।
यह सही है कि इस्लाम में सूद का लेने वाला, सूद का देने वाला, गवाह, सूद का लिखने वाला, सूद के लिखने के लिये कलम व किताब उपलब्ध कराने वाला, सूद के लिये पैसा मुहय्या कराने वाला, और यहां तक कि अगर किसी के सामने दो अंजान मुसलमान सूद के लेन देन की बात कर रहें हों और उन्हे उस मुसलमान ने न रोका जो उनको वह बाते करते सुन रहा था तो वह भी सूद के गुनाह में बराबर का भागीदार है।
लेकिन अब सोचना यह है कि हिन्दुस्तान में सैकड़ो साल से चली आ रही इस बैंकिंग प्रणाली के खिलाफ फतवा देने वाले मौलवियों ने ठोस क़दम क्यों नही उठाये।
अब कौन सा मुसलमान ऐसा है। जो बैंक में पैसा न रखता हो या बैंक से लेनदेन न करता हो। इसके अनुसार कही न कही बैंक से लेनदेन करने वाला इस गुनाह में बराबर का भागीदार है।
अगर इसको ये फतवा देने वाले मौलवी इतना बड़ा गुनाह समझते है तो हिन्दुस्तान में इस्लामी बैंकिंग अभी तक क्यों नही आई। सैकड़ो सवाल लेखक के मन में उमड़ रहे है। जिनका जवाब शायद इन मौलवियों के पास फतवा देकर मीडिया की सुर्खियों में छा जाने के अलावा दूसरा कोई नही होगा।
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