Tuesday, March 23, 2021

भूख डॉटकॉम की रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में हर दिन 6000 से ज़्यादा लोग भूख से मरते हैं। इंडियन एक्सप्रेस

 यह चीनी राष्ट्रपति के 5 साल पुराने वादे का पूरा होना है, जिसमें उन्होंने चीनी जनता से 2020 तक दरिद्रता से छुटकारा पाने की बात कही थी। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक़, 1978 से अब तक 80 करोड़ लोग ग़रीबी से छुटकारा पा चुके हैं, यह ऐसा कारनामा है जिसके बराबर कुछ ही कारनामे आ सकते हैं।

नवम्बर 2020 में चीन के अत्यधिक ग़रीबी या दरिद्रता से ग्रस्त आख़िरी प्रान्त ने भी, सही समय पर इससे छुटकारा पा लिया क्योंकि इसी साल सीपीसी 100 साल का जश्न मनाएगी।

सीपीसी ने उस वर्ग से ग़रीबी को दूर करने पर फ़ोकस किया जिसकी आय का तरीक़ा ज़्यादा परम्परागत था। 2013 में कम्यूनिस्ट पार्टी ने ग़रीबी दूर करने के लिए सेलेक्टिव या टार्गेटेड अप्रोच अपनायी जिसके तहत स्थानीय अधिकारियों को ग़रीब परिवारों के लिए विशिष्ट रूप से निर्मित योजना की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। बाद में संपत्ति, सब्सिडी और अतिरिक्त महारत सिखाने के संयोग से योजना को व्यवहारिक बनाया गया। नियमित और मोटे तौर पर डेटा इकट्ठा करना इस योजना का मुख्य हिस्सा था। यह सिस्टम राजधानी में मौजूद वरिष्ठ अधिकारियों को यह सुविधा देता है कि वे देश में किसी भी जगह किसी एक फ़ैमिली तक की तरक़्क़ी की निगरानी कर सकते हैं।

इसके विपरीत भारत में ग़रीबी पर आख़िरी डेटा भी बहुत पुराना हो चुका है। यह आंकड़ा 2011-12 का है। यह डेटा बताता है कि 1993-94 में ग़रीबी 45 फ़ीसद थी जो 2011-12 तक कम होकर 22 फ़ीसद तक पहुंच चुकी है, जिसमें साढ़े 13 करोड़ लोग पिछले 2 दशक में दरिद्रता के चंगुल से बाहर निकले। भारत में ग़रीबी के बारे में आख़िरी सर्वे 2017-18 में कराया गया था, जिससे उपभोग ख़र्च में निराशाजनक गिरावट का पता चला था और बड़ी तेज़ी से उसे केन्द्र ने छिपा दिया, जिसकी वजह से पिछले एक दशक के दौरान ग़रीबी पर कोई सूचना नहीं है।

बीजिंग ने ग़रीबी दूर करने के लिए लोगों को रीलोकेशन अर्थात एक जगह से दूसरी जगह बसाने की नीति अपनायी ताकि जल्दी से ग़रीबी उन्मूलन का लक्ष्य हासिल कर सके।



रीलोकेशन नीति के तहत 2016 से 2020 के बीच 1 करोड़ लोगों को दूसरी जगह बसाया गया हालांकि सभी को उनकी मर्ज़ी से नहीं बसाया गया।

बीजिंग ने दरिद्रता को मिटाने के लिए पांच साल के दौरान 700 अरब डॉलर ख़र्च किए। द इकॉनमिस्ट के मुताबिक़, हर दरिद्र परिवार पर 2015 में 500 युआन का सरकारी ख़र्च 2020 तक 26000 युआन तक पहुंच गया।

लोगों को एक जगह से दूसरी जगह बसाने के दौरान मानवाधिकार के उल्लंघन के दावे भी सामने आए। फिर भी ग़रीबी ख़त्म करने के लिए उठाए गए सभी उपाय ज़बर्दस्ती पर निर्भर नहीं थे। डिसेन्ट्रालाइज़्ड या विकेन्द्रित योजना, लाल फ़ीताशाही में सुधार और सही समय पर डेटा इकट्ठा करने जैसी साधारण नज़र आनी वाली कोशिशों से भी मदद मिली। इसी तरह सैकड़ों अरब डॉलर ख़र्च किए गए इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जो राष्ट्रीय जुनून बन गया। हर अपेक्षाकृत अमीर शहर, राजकीय इकाइयों और सरकारी इकाइयों को ग़रीब लोगों को ऊपर उठाने के लिए व्यवस्थित व समन्वित किया गया।

चीन की कामयाबी को नज़रअंदाज़ करने के बजाए, जैसा कि पश्चिम में कुछ लोग हैं, हमें उससे सीखना और ग़रीबी दूर करने के लिए आपसी मर्ज़ी से तरक़्क़ी के अपने विचार में उनके कई अच्छे विचारों को शामिल करना चाहिए। (MAQ/N)



(साभारः इंडियन एक्सप्रेस, लेखक के विचार से पार्सटुडे का सहमत होना ज़रूरी नहीं है।)



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