हमारे देश में किसान को अन्दाता मन जाता है परन्तु आज हमारे वही किसान भाई नए कृषि कानूनों के खिलाफ 16 दिनो से आंदोलन कर रहें हैं। किसानों और सरकार की लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। भारतीय किसान यूनियन ने तीनों कृषि बिलों को शुक्रवार को कोर्ट में चैलेंज किया। उनका कहना है कि इन कानूनों के चलते किसान कॉरपोरेट के लालच के आगे कमजोर होंगे। इससे पहले किसान ऐलान कर चुके कि अब देशभर में ट्रेनें रोकेंगे। परन्तु केंद्र सरकार की नींद नहीं खुल रही है
भारत का किसान हमेशा से जिद्दी और अपनी आन बान के लिए जाना जाता है
केंद्र सरकार की हट भारत के किसान को और मजबूत बनती है जिसका अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि जब 1980 में केंद्र और उत्तरप्रदेश में कांग्रेस सरकार थी तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलनों ने ज़ोर पकड़ लिया और सरकारों की नीतियों के खिलाफ लगातार किसान आंदोलन कर रहे थे।
इन आंदोलनों की कमान एक ठेठ बुजुर्ग किसान स्व चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने संभाली हुई थी । महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे
ऐसा बताया जाता है कि करमुखेड़ी बिजलीघर पर किसान आंदोलन में गोली चल गई और 2 किसानों की मौत हो गयी । किसान आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया और लाखो की संख्या में किसान महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में जमा हो गए।
इस आंदोलन की गूंज ना सिर्फ देश मे बल्कि विदेशों में भी सुनाई दी । विदेशी मीडिया भी इसे कवर करने पहुँची । महेंद्र सिंह टिकैत रातोंरात किसानों के भगवान बन चुके थे । किसानों में रोष था लेकिन वे शांति के साथ जमे बैठे थे। किसानों की ताकत का एहसास सरकार कर चुकी थी ।
11 अगस्त 1987 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह सिसौली में इसी क्रम में चल रही एक पंचायत में पहुँचे । किसान जहां भी पंचायत करते उनके पास गुड़गुड़ाने के लिए हुक्का जरुर होता । खाने पीने का इंतेजाम भी गांववाले आपस मे मिलकर कर लेते ।
पीने के लिए पानी करवों ( घड़ा) में होता और एक आदमी घड़ा हाथ मे उठाकर पानी गिराता जिसे मुँह को हाथ लगाकर किसान पानी पीते। इसे देहात में ओक से पानी पीना बोला जाता है।
मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को प्यास लगी तो उन्होंने किसानो से पानी मांगा । किसानों ने उन्हें भी करवा ( घड़ा) उठाकर ओक से पानी पिला दिया । वीर बहादुर सिंह को ये खुद का अपमान लगा । जबकि किसानों के लिये इस तरह पानी पीना साधारण बात थी और यहाँ की रीतिरिवाजों में ये साधारणतः शामिल है।
उस घटना के बाद मुख्यमंत्री नाराज होकर वहां से चले गए । सरकार और किसानों में दूरियां और बढ़ गयी । बाद में केंद्र सरकार को इसमे हस्तक्षेप करना पड़ा और राजीव गांधी सरकार ने राजेश पायलट को इस किसान आंदोलन में भेजा ।
इस घटना से पता चलता है की किसान सरकार को झुकाना जानते हैं
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