हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली गंगा को निर्मल बनाने के लिए न दीर्घकालिक योजना बनी, न बजट राशि खर्च हुई और न ही निगरानी का तंत्र बना। हालांकि प्रचार पर खर्च और चहेते कर्मचारियों को वेतन देने के मामले में सभी नियमों को ताक पर रख दिया गया। यह कड़वी हकीकत ‘नमामि गंगे’ योजना की है जिसे सरकार ने तीन साल पहले गंगा की सफाई के लिए बड़ी महत्वाकांक्षा के साथ शुरू किया था। यह चौंकाने वाली जानकारी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में उजाहर हुई है जो मंगलवार को संसद में पेश हुई।1‘नमामि गंगे’ का ऑडिट करने के बाद तैयार की गयी गई इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि 2014-17 के दौरान तीन वर्षो में इस योजना के लिए आम बजट में आवंटित धनराशि की मात्र 8 से 63 प्रतिशत धनराशि खर्च हुई और बड़ी राशि केंद्र के एनएमसीजी, राज्यों के एसपीएमजी और अन्य एजेंसियों के पास पड़ी है। खास बात यह है कि मोदी सरकार ने जिस साल यानी 2014-15 के आम बजट में बड़े जोर-शोर से ‘नमामि गंगे’ के लिए 2137 करोड़ रुपये आवंटित करने का ऐलान किया था, उस गंगा की सफाई पर मात्र 170 करोड़ रुपये खर्च हुए। इसी तरह वित्त वर्ष 2015-16 में नमामि गंगे के लिए 2750 करोड़ रुपये आवंटित किए गए लेकिन सरकार मात्र 602 करोड़ रुपये ही खर्च कर पायी। यही हाल 2016-17 में हुआ और नमामि गंगे के लिए आवंटित 2500 करोड़ रुपये में से मात्र 1062 करोड़ रुपये ही खर्च हो सके। इस तरह बीते तीन साल में एक बार भी बजट में आवंटित पूरी राशि का इस्तेमाल गंगा की सफाई के लिए नहीं हो पाया। कैग ने धनराशि का पूरा इस्तेमाल न होने के लिए नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) द्वारा नमामि गंगे के खराब क्रियान्वयन को करार दिया है।1गंगा की सफाई को लेकर एनएमसीजी के अफसर कितने गंभीर हैं इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सरकार ने जनवरी 2015 में जो ‘क्लीन गंगा फंड’ बनाया था उसमें जमा 198.14 करोड़ रुपयों का इस्तेमाल का तरीका भी वे नहीं ढूंढ़ सके। दरअसल एनएमसीजी ही वह संस्था है जिसके जिम्मे नमामि गंगे का क्रियान्वयन है। यह केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रलय के अधीन आती है। कैग रिपोर्ट के अनुसार एनएमसीजी ने प्रचार और अनुबंध पर कर्मचारियों की नियुक्ति के मामले में सरकार के सभी नियमों को ताक पर रख दिया।
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